रक्षक (भाग : 03)
रक्षक भाग - 3
अतीत
लेखक - मनोज कुमार
सम्पादक - सूरज शुक्ल
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थोड़ी ही देर बाद वे तीनो दरबार में पहुँचते हैं।
\'महान वैनाडा की जय हो…\'
दरबार महाराज के जय जयकार से गूंज रहा था, परन्तु वहां ज्यादा लोग उपस्थित न थे।
"अरे गुरु देव! आप!, प्रणाम स्वीकार करें "
आश्चर्यमिश्रित सम्मान के साथ वैनाडा अपने सिंहासन से उठकर गुरुदेव के चरण छूते हुए बोला।
"आयुष्मान भव: पुत्र!" (गुरूदेव ने आशीर्वाद दिया)
(यहाँ के लोग भी धरतीवासियों की भाषा ही बोलते है,
वो पुरातन एवं नए दोनों काल की भाषा,
आखिर माज़रा क्या है ,मुझे ये पहले सोचना चाहिए था ।
फिलहाल तो मुझे ये जानना है कि मैं कौन हूं, और यहाँ कौन सी मुसीबत है, जो धरातल पर तबाही मचा रही है।)
राज अब भी अपने मन मन में यही सब सोच रहा है।
फिर अर्थ, द ग्रेट वैनाडा को सब कुछ बताता है।
"आओ नायक! जाने कब से तुम्हे देखने को मेरी आँखें तरस रही थी।
बहुत ढूंढा तुम्हें पर नही मिले, आज हमें और इस पूरे ग्रह को तुम्हारी बहुत जरूरत है।"
"यार ,यही बात सुन सुनकर मैं थक चुका हूँ, कुछ नया बोलो, मुझे मेरे बारे में, इस ग्रह पर क्या हुआ ? इसके बारे में जानना हूँ" राज ने झुंझलाते हुए कहा।
"शांत नायक!" अर्थ बोला
" हम तुम्हें धीरे धीरे सब बताते हैं।"
राज (झुंझलाकर) :-" कौन है नायक,? मेरा नाम राज है,
जबसे यहाँ के लोगो से मिला हूँ, सब यही कह रहे है।
कोई लहू बना देता है, कोई नायक, कोई रक्षक, चल क्या रहा है यहां?? "
अब राज की व्यग्रता क्रोध का रूप धारण करने लगी थी। वो बार बार एक ही जैसी बात किये जाने पर बहुत ही चिड़चिड़ापन महसूस करने लगता है।
वैनाडा :- "हाँ ! क्योंकि तुम नायक हो, मेरे सबसे प्रिय मित्र हो तुम, जीवनरक्षक हो तुम मेरे ।”
राज :- "चलो मान लिया, अब बताओ मुझे कि मैं कौन हूँ? मेरा रूप बदलकर अचानक ऐसा कैसे हो गया? और मैं पता नही कैसे तुम सबका अपना हो गया, कैसे??
और इस ग्रह पर ऐसी क्या मुसीबत है? जिससे आप लोग नही लड़ सकते, और मेरे माता पिता के बारे में आप लोग क्या कह रहे थे ? और……."
गुरु :(बीच में) "सब बताता हूँ, जरा सब्र तो करो।
मैं सब बताऊंगा। इस ग्रह पर क्या मुसीबत है, वो यहां कैसे आयी सब बताऊंगा।"
अर्थ - "ये तो मुझे भी जानना है गुरुदेव, आखिर ये इतने ताकतवर क्यों हैं ?( कहते हुए उसकी आंखें नम हो गयी)"
गुरुदेव:- "अच्छा ठीक है। सुनो!"
"नायक के पिता वनष मेरे पहले शिष्य थे। सबसे प्रिय शिष्य। मैं उनके पिता का सबसे घनिष्ट मित्र था।
उस समय नायक के पिता अत्यंत तीव्र बुद्धि वाले और बहुत मेधावी थे।
वो मेरे पास शिक्षा ग्रहण करने आये थे । चूँकि मेरे पिता राजगुरु थे, और मेरे दो प्रिय मित्र थे, सेनापति “वज्र” और महाराज वैनाडा के दादा महाराज "वीनस”।
इन दोनों ने मुझे नायक के पिता वनष और वैनाडा के पिता वैकाण्डा को शिक्षा देने का आग्रह किया…"
कुछ रुक कर गुरुदेव ने फिर कहना शुरू किया,
.."और तब मैं पिताश्री की आज्ञा लेकर उन दोनों को शिक्षा दीक्षा देने लगा। वो दोनों बहुत ही मेधावी थे।
बहुत ही जल्दी सबकुछ सीख गए। वैकाण्डा और वनष को सभी शिक्षा दीक्षा पूर्ण होने के पश्चात वैकाण्डा अपना देश संभालने आ गया, परन्तु वनष को परमशक्तिज्ञान प्राप्त करने का जुनून सवार हो गया था। इससे पहले ये दुस्साहस किसी ने नही किया था। स्वयं मैं भी ये दुस्साहस करने का साहस नही जुटा पाया था।
सारी गड़बड़ यहीं से शुरू हुई क्योंकि कोई भी महाशक्ति किसी अन्य को परम ज्ञान प्राप्त करते नही देख सकती थी।
हमारे ग्रह पर दो प्रकार के लोग रहते थे। इसलिए पूरे ग्रह पर मात्र दो देश और दो ही राजा थे । एक उत्तरार्द्ध दूसरा दक्षिणार्द्ध।
दक्षिणार्द्ध अवन देश का राजा रेवन भी बहुत ज्यादा चालाक था, कब मक्कारी कर जाएगा ये बताना बहुत मुश्किल था। परन्तु उसका बेटा धैर्य उसके स्वभाव के ठीक विपरीत था। वो वनष के परमशक्तिज्ञान को हासिल करने में सहायता करने लगा। धैर्य की एक बहन भी थी - " वेणुका ", वेणुका बहुत चतुर, चपल और सुलझी हुई युवती थी। वनष उसे पसन्द करने लगा था और वेणुका भी उसे पसन्द करती थी। दोनों नियम कानून ताक पर रखकर मिलने लगे। इस काम में वेणुका की मदद उसका भाई धैर्य भी करता था।
वो गुप्त मार्ग से उसे ले जाकर वनष से मिलवाता। दोनों का आपस में ये रिश्ता प्रेम में बदल गया कुछ पता ही न चला, तब महान वैकाण्डा राजा रेवन के घर अपने परममित्र के लिए उनकी बेटी का हाथ मांगने गए । रेवन पहले से ही वनष पर क्रोधित था।
वैकाण्डा के लाये इस रिश्ते की पहल की खबर ने उसके क्रोधाग्नि को भड़काने के लिए आग में घी का काम किया ,और उसने साफ शब्दो मे किसी भी उत्तरवर्ती से संबंध रखने से मना कर दिया।
धैर्य को भी अपना राजधर्म निभाने के लिए मजबूर होना पड़ा। रेवन ने वैकाण्डा से वेणुका को वापस भेजने के लिए कहा, न भेजने पर उनसे युद्ध करने की धमकी दी। वैकाण्डा ने भी अपनी मित्रता के पागलपन में युद्ध का ऐलान कर दिया। कई दिनों तक लड़ाई चलती रही, पर वैकाण्डा, वनष और धैर्य आपस में कभी लड़ाई नही चाहते थे। धैर्य अपनी बहन की खुशी चाहता था, इसलिये भीषण युद्ध मे भी उसे चुपके से वनष के पास पहुँचा दिया। और वेणुका के भाग जाने की खबर सुनते ही रेवन सम्पूर्ण उत्तरार्द्ध को नष्ट कर देने की तैयारी कर युद्ध की घोषणा कर दिया पर धैर्य ने किसी तरह समझा बुझाकर उन्हें शांत किया। दोनों का विवाह हुआ पर किसी को पता न चला।"
गुरुदेव श्वास लेने के लिए पल भर रुके, पुनः कहना शुरू किया ।
"तुम्हारे जन्म के समय तुम्हारी माँ के पास कोई नही था, वैकाण्डा ने तुम्हारे पिता को देश के बाहरी सीमा पर चल रहे एक युध्द में भेज दिया था। तुम एक अचेत बालक के रूप में जन्मे थे। तुम्हारी नब्ज रुकी हुई थी इसलिए तुम्हारा जन्म होने के तुरंत बाद तुम्हारी माँ ने तुम्हे मुझे सौंप दिया। तुम्हारा पिता हमेशा इस बात से अनजान रहा कि उसका कोई बेटा भी है, जो मृत्यु को प्राप्त हो चुका है, और उसने अपने बेटे की सूरत भी नही देखी , क्योंकि ये खबर उसके परमशक्तिज्ञान को हासिल करने में बाधक बन सकती थी। ये बात सिर्फ मुझे, तुम्हारी माँ, तुम्हारे मामा और वैकाण्डा को पता थी।
हमने तुम्हे सत्तर वर्षों तक कृत्रिम कुंड में रखा । तब तुम्हारे अंदर की शक्तियों ने तुम्हे फिर जीवित कर दिया। हमारी मेहनत, हमारा प्रयास सफल रहा। अब तुम सामान्य होते जा रहे थे। ठीक उसके दो वर्ष के बाद वैनाडा का जन्म हुआ और हमने तुम दोनों को एक साथ एक ही परिवेश में पाला।"
"अच्छा फिर मेरे पिता कहा गए, क्या उन्हें इसकी खबर नही दी गयी कि उनका एक बेटा भी है जो जीवित है..?" राज ने उत्सुकता पूर्वक पूछा।
गुरुदेव - "पहले पूरी बात सुनो, मैं सब बता रहा हूँ।
कुछ दिन बाद तुम्हारे पिता, तुम्हारी माँ से मिलने के लिए पुनः तुम्हारे नाना के देश में गए, मगर इस बार उसकी सुरक्षा स्वयं धैर्य कर रहा था। उसने कुछ ऐसा किया कि तुम्हारे पिता को फिर से परमशक्तिज्ञान प्राप्त करने का जुनून सवार हो गया।
उन्होंने सौ वर्षो तक नीले सूर्य के अंदर जाकर तपस्या की और "लहू" बनकर बाहर निकला। तब उसकी शक्तियां असीमित हो चुकी थी। वो एक "लहू" था, अब उसे सब "लहू" कहते थे, परन्तु परम शक्तिज्ञान प्राप्त करते ही समस्त काली शक्तियों की नज़र उसपर पड़ गयी। और वो जब तपस्या कर रहा था तभी से हमारे ग्रह पर आक्रमण होने प्रारम्भ हो गए। तब तुम वयस्क हो चुके थे।"
"काली शक्तियों का आक्रमण, आपने मेरे और मेरी शिक्षा के बारे में अभी तक कुछ नही बताया। मुझे कुछ भी याद नही है"। - राज बोला।
गुरु रक्ष - "हाँ अंधेरे का बेटा, उसने अपने सेवको को हमला करने के लिए भेजा था। क्योंकि वनष के कारण हमारे ग्रह पर बनी शक्ति पट्टिका कुछ क्षण के लिए टूट गयी थी, और अंधेरे की नज़र हमारे ग्रह को भी लग गयी।"
"तुम्हारा बचपन वैनाडा के साथ अच्छा गुजर रहा था।। वैकाण्डा ने तुम को अपने पुत्र के भांति एक समान रूप से पाला।
तुम दोनों को शिक्षा मुझे ही देनी थी, मैंने देखा तुम्हारे अंदर तुम्हारे पिता से भी तीव्र बुद्धि और ज्ञान अर्जित करने की क्षमता थी। इसलिए मैं कभी उसके सामने परम् शक्तिज्ञान का नाम ही नही लिया। दोनों ही बहुत जल्दी सीख रहे थे पर तुम ( राज को इंगित करते हुए) बहुत ही चपल , तीक्ष्ण बुद्धि के स्वामी थे। वो सारी कलाएं जिन्हें किसी सामान्य को सीखने के लिए कम से कम चार वर्ष लगते, उन्हें केवल 8 महीने में ही सीख गये ,और इसी प्रकार तुम दोनों को मैंने लगातार 7 सालो तक शिक्षा दी। और शिक्षा सम्पन्न होने तक तुम दोनों बहुत गहरे मित्र बन चुके थे।
दोनों को साथ लेकर मैंने तेरह ग्रहों का परिक्रमण कराया, ताकि ये दोनों आने वाले समय मे अपने सौरमंडल की रक्षा कर सके।"
सब कुछ अच्छे से गुजर रहा था , कि अचानक न जाने कैसे अंधेरे नजर इस ग्रह को लग गयी। वनष का किया गया दुस्साहस हमे बहुत भारी पड़ा।
तब धैर्य दोनों देशों को एक करने का प्रस्ताव लाया, वनष अब तक नीले सूर्य में तपस्या कर रहा था, उसके गए हुए 98 वर्ष से ज्यादा हो चुके थे, परन्तु अब वो सिर्फ परम् शक्तिज्ञान पाना चाहता था, और उसका दुष्परिणाम हमे भुगतना पड़ा।
हमारे इस प्यारे से ग्रह पर DEADRONS ने आक्रमण कर दिया।
DEADRONS अंधेरे के सेवक है। इससे पहले किसी और ने हमपर हमला करने की जुर्रत न की थी। परन्तु वनष की लालसा ने हमारे घर मे अंधेरे के आने का द्वार बना दिया।
DEADRONS का प्रमुख UNDEAD कभी न मरने वाला एक वहसी दरिंदा, और कुशल योद्धा, तीव्र बुद्धि वाला और अंधेरे का सबसे महान सेवक था। उन्होंने बिना किसी वजह के, बिना किसी चेतावनी के युद्ध आरम्भ कर दिया इसलिए हम उन्हे रोकने और उनके साथ युद्ध करने में असमर्थ थे।
युध्द बहुत भीषण था, DEADRONS का तूफान रोके नही रुक रहा था, तब हमारे ग्रह के चारो महावीर 4J (जलज, जैक्सन, जेबन और जोसेफ) उन्हें रोकने गये।
एक महायुद्ध हमेशा कुर्बानी मांगता है । वे चारो UNDEAD के समक्ष एक दिन से ज्यादा नही ठहर सके और हमेशा के लिए सो गए।
फिर उनको रोकने महासेनापति वज्र अपनी सारी सेना लेकर पहुँचे, मगर अब DEADRONS एकदम निरंकुश हो चुके थे। हर रोज भीषण युद्ध हो रहा था, पूरा ग्रह इस युद्ध की आग में जल रहा था। उसी समय हम तुम दोनों को सभी तेरह ग्रहों का परिक्रमा करा कर अपने ग्रह पर वापस लौटे थे।
इतने घमासान युद्ध को देखकर तुम दोनों यही युद्ध क्षेत्र में ही रुक गए। तब मैंने तुम्हें रोकना चाहा था फिर भी नही रोक पाया क्योंकि “युद्ध वीरो की आत्मा होती है”
तुम दोनों के आ जाने से हमारे वीरो में नवउत्साह संचारित हो गया,पूरा पासा ही पलट गया, तुम दोनों की असीम योग्यता और कुशलता से युद्ध का पलड़ा हमारी ओर झुक चुका था, परन्तु इसी बीच महाराज वैकाण्डा अचेत हो गए थे और महासेंनापति वज्र भी बहुत घायल हो चुके थे इसलिए उस दिन से वैनाडा को महाराज चुना गया, और तुम्हे महासेनापति।
अगले दिन सेना कि कमान तुम्हे सम्भालनी थी। उस दिन के युद्ध मे तुम्हे नया नाम मिला “रक्षक”।
अर्थ - "तो उस दिन क्या हुआ, क्या रक्षक बनने के बाद नायक ने युद्ध जीत लिया?\'\'
गुरु रक्ष - "नायक और वैनाडा ने DEADRONS छक्के छुड़ा दिए, DEADRONS फोर्स भागने लगी । सब कुछ ठीक ही हो रहा था मगर UNDEAD ने दोबारा वही घटिया चाल चल दिया, उसने युद्ध के नियमो को तोड़ा और VAINADA पर पीछे से रात के दूसरे पहर में हमला कर दिया जब कि सारी सेना उन्हें हराने की खुशी में चैन की नींद सो रही थी ।"
VAINADA उनके साथ लड़ा लगभग पांच सौ सैनिको को अकेले ही मौत के घाट उतार दिया ,मगर जब वो सैनिको से लड़ने में व्यस्त था UNDEAD ने पीछे से हमला कर उसे लगभग मार ही दिया।
उसकी चीख से सबकी नींद टूट गयी, नायक अपने शिविर से निकल कर तेजी से दौड़ पड़ा,और VAINADA के शिविर में घुसा ,मगर तब वह कोई न था सिर्फ अचेत VAINADA के"।
\'\'अपने प्रिय मित्र को इस अवस्था मे देख , नायक अत्यंत क्रोधित हो गया। उसका क्रोध जग उठा जिससे उसकी सोई हुई ताकते जग उठी। वो इस धरती के दो अलग अलग भागों में रहने वाले प्राणियों के संयोग से जन्मा पहला प्राणी था, इसलिए उसका क्रोध किसी भीषण तूफान की तरह था।
और उस क्रोध में आकर नायक सारे “Deadrons’’
को समाप्त करने ही वाला था कि उसके दादा वज्र ने उसे रोक लिया, और “ Deadrons’’ के लीडर “UNDEAD’’ को उसके साथियों सहित बंदी बना लिया गया। मगर UNDEAD के पास काली शक्तियां थी, वो इस साधारण कैद से चंद पलो में आजाद हो गया।
अब तक वैनाडा को होश नही आया था था, उसकी नब्ज थम चुकी थी।
"कैसा है मेरा दोस्त? कैसा है “VANU’’? कुछ बोलो मेरे मित्र, क्या हुआ है तुझे?" नायक उसे बुरी तरीके से झंझोड़ देता है, पर उसकी साँस रुकी चुकी थी
नायक VAINADA को प्यार से VANU कहता था , नायक जज्बाती हो गया था।
वो ज़ोर जोर से रोने लगा उसे अपने आप पर ही क्रोध आने लगा । वो खुद को ही इन सब का दोषी मानने लगा ।
जैसा कि पहले ही बता चुका हूँ हमारी भावनायें ब्रह्मांड के अन्य जीवों की अपेक्षा अधिक संचरित होती हैं, और ये भावनाएं ही हमारी ताकत और कमजोरी हैं।
सब उसे समझाते रहे ,पर उसने किसी की न सुना, उसे लग रहा था की, अपना सबसे जिगरी दोस्त खो दिया है।
वो उसकी मौत का कारण खुद को ही मानता था।
इसलिए वो खुदपर ही बहुत अधिक क्रोध करने लगा।
वो अपना हाथ काटने के लिए एक ख़ंजर उठा लेता है, महासेनापति वज्र यानी उसके दादा उसे रोकने का प्रयास करते है, फिर भी ख़ंजर हाथ को चीर चुका था ,उसका लहू VAINADA पर गिरने लगता है।
सारा ग्रह शोकाकुल था, सब रो रहे थे,मातम मना रहे थे,
और नायक खुद पर क्रोध कर रहा था, वो खुद ओर बहुत अधिक क्रोधित था, वो किसी की बात सुनने को तैयार नही था, यह तक कि मेरी बात भी।
तब नायक सुबह होते ही अकेले ही DEADRONS के शिविर में चला गया। हज़ारो सैनिकों को गाजर मूली की तरह काटता गया।
मगर UNDEAD कभी मर नही सकता था, इसलिए उसे तापग्रह के उजाले में रखा गया, क्योंकि उजाले में अंधेरे की शक्ति क्षीण हो जाती है। नायक उसे मार देना चाहता था पर उसे मारना असम्भव था। महासेनापति वज्र उसे कैद कर नायक को समझाने गए, परन्तु वो वैनाडा की मौत का जिम्मेदार खुद को मानता रहा।
उसका क्रोध चरम पर था, उसके अंदर जैसे लाखो सूर्य जल रहे हो, शायद इसी समय वनष को परम ज्ञान भी मिला जो शायद उसके बेटे नायक में भी प्रवेश कर गया।
कि अचानक नायक गायब हो गया।
कोई नही समझ सका कि नायक कहा गायब हो गया । सबको लगा शायद अत्यधिक क्रोध के कारण उसकी सोई हुई समस्त शक्तियां जाग गयी और वो हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर चला गया।
और जैसा कि सर्वविदित है कि क्रोध, अंदर ही अंदर खाये जाता है परंतु नायक के रक्त के कारण वैनाडा की साँसे फिर से चलने लगी। पर वो अपने मित्र से मिलने को बहुत व्याकुल था, आज दो सौ पचास वर्ष तक वो तुम्हे ढूंढता रहा।
मगर हम सबने एक गलती कर दी थी, UNDEAD से ध्यान हटाकर, वो हम सब की अपेक्षाओं से कही बहुत ज्यादा शक्तिशाली था और नायक के जाते ही वो फिर से तापग्रह से बाहर आते ही युद्ध करने आ गया।
इस बार उसके साथ अंधेरे का बेटा भी था। उसने अंधेरे के बेटे के साथ मिलकर पूरा ग्रह लगभग मिटा ही डाला था, क्योंकि उस वक़्त उसे रोकने वाला कोई नही था।
वनष जब तक इस ग्रह पर आया तब तक ये पूरी तरह नष्ट होने की कगार पर था। तब वनष जो कि परम् शक्तिज्ञान धारण कर "लहू" बन चुका था, इस ग्रह का पुनर्निर्माण किया, UNDEAD और अंधेरे के बेटे से भीषण युद्ध हुआ, उसने अकेले ही अंधेरे के सेवको को हरा दिया।
तब उसे तुम्हारे बारे में पता चला। उसे तुम्हारी और तुम्हारी माँ की बहूत याद आती। उसने पूरा ग्रह छान मार लिया पर तुम दोनों कही न मिले, बाद में धैर्य ने बताया कि वो बहुत पहले ही इस ग्रह को छोड़ चुकी है।
वनष अब तुम्हे ढूंढ रहा था, पर तुम भी कही नही मिले। परम् शक्ति किसी दूसरे परम् शक्ति धारक को नही ढूंढ सकती थी। तुम भी तब लहू बन चुके थे और इस दुनिया से कही दूर खो गए थे।
अचानक 2 वर्ष पहले वनष भी न जाने कहा चल गया। वैसे वो तुम्हे और तुम्हारी माता को ढूंढने चला जाता था परन्तु एक वर्ष से कम समय में वापस भी लौट जाता था।
परंतु इस बार दो वर्ष से ज्यादा होने पर भी वापस नही आया। इसका फायदा अंधेरे के बेटे ने उठाया और उसने undead और उसकी सेना को फिर से हमला करने का आदेश दिया।
"जब मेरे पिता मुझे नही ढूंढ पाए तो आपने मुझे कैसे ढूंढा? और ये अंधेरे का बेटा कौन है? मेरे पिता ने इस ग्रह का पुनः निर्माण कैसे किया? और परम् शक्तिज्ञान इतनी अधिक शक्ति कैसे प्रदान कर सकता है??"
"क्या आपको पता है कि मेरी माँ कहां है?" - राज ने एक सांस में ही ढेरो सवाल कर डाले गुरु रक्ष से, वो अब तक बहुत अधीर हो चुका था।
बाकी सब भी बड़े ध्यान से सुन रहे थे।
"अंधेरे का बेटा, अंधेरे के सबसे महाशक्तियों में से एक है। " गुरुदेव ने पुनः कहना शुरू किया।
"परमशक्ति बहुत कुछ कर सकती है, उसी का प्रयोग कर तुम्हारे पिता ने बी शक्ति का निर्माण किया। और ये परमशक्ति तुम्हे भी प्राप्त है। जब हमें लगा कि तुम यहाँ से गायब हो गए हो तो तुम भी किसी नीले सूर्य में जा चुके होगे, इसलिये वनष भी तुम्हे नही ढूंढ पाया होगा, पर ये समझ नही आया कि तुम पृथ्वी पर सामान्य और छोटे बालक के रूप में कैसे जन्मे? पर अभी ये बड़ा सवाल नही है। उस बार वनष ने अंतिम साँस ले रहे इस ग्रह को पुनर्जीवित किया था ।
परन्तु अब तुम्हारे पिता यहां नही है और अंधेरे के बेटे कहने पर हमारे ग्रह पर आक्रमण हो चुका है। उसे रोकने में हम बुरी तरह से असफल हैं।
इस बार भी हमने बहुत कोशिश की, पर इस बार अंधेरे की सेना पहले से बहुत ज्यादा ताकतवर होकर आई है। हमने अपने कई महाबलियों को खो दिया। वैनाडा का छोटा पुत्र महाबली योद्धा \'\'आदि" भी युद्ध में वीरगति को प्राप्त हो गया।"
ये कहते समय गुरु रक्ष की आंखे नम हो गयी, आँसू पोछकर वो फिर आगे कहते हैं।
" हमारी लाख कोशिशों, अतिउन्नत शक्तियों के प्रयोग के बाद भी उनको रोक पाना नामुमकिन था, इसलिए हमने यूनिक की मदद से तुम्हे ढूंढा।
अब तो तुम्हारी जरूरत भी आ पड़ी है। क्योंकि अब अंधेरे के बेटे की मदद से “UNDEAD” अपने साथियो (Deadrons & UNDEAD FORCE) के साथ तुम्हारे पिता की कैद से भाग गए हैं। ये सारी तबाही उन्ही ने फैलाई है, और हमने उन्हें रोकने की कोशिश की पर अब उनकी शक्तियां बहुत बढ़ चुकी है, इसलिए हमने अब उन्हें रोकने के बजाय अपने लोगो को बचाने और तुम्हे ढूढ़ने पर ज्यादा ध्यान दिया।
उनके साथ इस युद्ध मे हमने कई महावीरों को खो दिया।। हम इस युद्ध के लिए बिल्कुल भी तैयार नही थे, उन्होंने अचानक से आक्रमण कर दिया। हमारी तीन सैनिक बल टुकड़ियां मारी जा चुकी हैं, हम अब तक गर्भगृह में सुरक्षित हैं, परन्तु ज्यादा देर तक सम्भव नही है। वो जल्द ही हमें ढूंढ लेंगे और इस ग्रह को फिर से नष्ट कर देंगे।
और ये हमारी किस्मत ही थी कि तुम मिल गए।
तुम्ही हमारी आखिरी उम्मीद हो। अब तुम्हे अपनी सारी शक्तियों को जगाना होगा, जैसे 4J से हुए लड़ाई के समय जगी थी।
अब तुम्हे अपने ग्रह को “UNDEAD FORCES” और “DEADRONS” से बचाना है।
परन्तु तुम अपनी शक्तियों के बारे में कुछ भी नही जानते, तुम्हे अपनी शक्तियों को जानना होगा।
गुरु रक्ष उसे समझाने लगते है, और उसे उसकी शक्तियों के बारे में बताते है।
गुरु - और हां नायक एक मुख्य बात मैं बताना ही भूल गया।
"क्या?"- राज अचंभित होते हुए बोला।
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इधर धरती पर राज के घर से बाहर निकले पांच घण्टा हो चुका था। राज इतना देर कभी बाहर नही रहता था। आज तो उसके पापा भी आने वाले थे, उसे इस बात की खबर थी मगर वो न जाने कहाँ चला गया ।
पूजा कब से यही सोचे जा रही थी। तभी उसके मम्मी की आवाज उसे ख्यालों की दुनिया से बाहर लाती है।
मम्मी - \'\'पूजा बेटा, देख पापा की फ्लाइट कब की है। अगर राज होगा तो उसे लेने भेज देना नही तो जा तू खुद ही ले के आना उनको"
पूजा - "ठीक है, मम्मी"।
पूजा समय देखती है, फ्लाइट 1 घण्टे बाद आने वाली थी, वो देखती है राज भी घर नही आया तो खुद उनको लेने चली जाती है।
यहां कोई कार यूज़ नही करता, एक ही छोटा सा हवाई अड्डा है, वहां से चलने वाली सड़को से आप कही भी आ जा सकते हैं, लेकिन ये सुविधा सिर्फ शहर में है, उससे बाहर कही नही, पूरे शहर में सीवर लाइन्स बिछी हुई हैं, ख्यालों में खोई हुई पूजा कार में सवार होती है और हवाई अड्डे पर पहुचती है, जहाँ उसके पापा पहले ही आकर खड़े थे ।
पूजा उन्हें लेकर शॉपिंग करती हुई घर आती है, और मम्मी के काम मे हाथ बटाने लगती है। मगर वो अब भी सोच रही थी कि ये राज कहा गया?
अब तक शाम हो चुकी थी।
पापा का भी इस बात पर ध्यान गया कि राज घर मे नही है, उन्होंने पूजा से पूछा।
पापा:- "पूजा बेटे ,राज कहा गया है ? क्या तुमको कुछ पता है?"
पूजा:- (मन मे) “ओह्ह अब क्या करूँ अगर सच बताऊँगी तो मम्मी पापा भी परेशान हो जाएंगे, तो क्या करूँ झूठ बोल दू!
वैसे इतने समय तक वो कभी बाहर नही रहता, उसे तो घर आ जाना चाहिये। आखिर आज क्यों नही आया क्या हुआ होगा उसे”
"क्या सोच रही हो बेटा!" पापा बोले।
पूजा :- "कुछ नही पापा!, हो सकता है वो अपने किसी दोस्त के घर चला गया हो।"
"तो उसके सभी दोस्तों से कॉल करके पूछो, उसे देखे बिना मुझे नींद नही आने वाली" मम्मी ने चिंतित होते हुए कहा।
"ओफ्फो मम्मी!, तुम भी न, मेरे पास उसके दोस्तों का नम्बर कहा से आएगा " ( जबकि सच ये है कि आज वो अपना फोन लेकर ही नही गया है, और मैंने उसके सभी दोस्तों से पूछ लिया है, वो किसी के पास नही है, तो फिर वो कहा गया होगा?
"हे भगवान ! मेरे भाई की रक्षा करना")
"तो फिर उसके फ़ोन पर कॉल करो, कहा गया नालायक!"
पापा आवेश में आकर बोले।
"पापा! उसका फ़ोन स्वीच ऑफ बता रहा है", पूजा ने जानबूझकर झूठ बोला।
(जबकि उसने खुद ही स्विच ऑफ कर दिया था ताकि मम्मी पापा ज्यादा परेशान न हो, भाई की गैरहाजिरी में उसे ही इनका ख्याल रखना है, ऐसा वो अपने भाई से वादा कर चुकी थी”)
"अच्छा ठीक है, जा तू सो जा " पापा ,पूजा से बोलेे।
"चलो शांति !, तुम भी आराम करो उसे कुछ नही होगा" पापा ने उसकी मम्मी को सांत्वना देते हुए कहा, जबकि वो खुद चिंतित थे।
पूजा:- “अब नींद किसे आ रही है, वैसे भी वो मुझे बताए बिना कही नही जाता। "
आखिर ऐसी क्या बात है ,जो उसने मुझे बताना जरूरी नही समझ , सुबक….
पूजा के आँखों मे आँसू आ गए थे, वो अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर रोने लगती है।
तभी पूजा को लगता है कि छत पर कोई है, पर वो इसे अपना भ्रम मानती है। तभी कोई उसका दरवाजा खटखटाता है, जब वो दरवाजा खोलती है तो वहां पर हाथ मे स्केट्स लेकर एक मुस्कुराता हुआ शख्स खड़ा रहता है।
"तुम…..!!!"
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"अब बहुत हुआ गुरुदेव ,जितना जानना था मै जान चुका
अब उन्हें अपने किये पर बहुत पछतावा होगा।"
“ जब मौत तांडव करेगी उनके सर पर” नायक दहाड़ उठा था ।
'' अब बहुत हो चुका DEADRONS, बहुत हो चुका,
तुमने जो किया ,उसकी सजा देने आ रहा है नायक!"
आज राज गरज रहा था। उसकी आँखों मे लहू खौल रहा था।
वो चीख रहा था । सब डरने लगते है कि अब क्या होगा।
" बस करो नायक! अब विश्राम कर लो" गुरुदेव और VAINADA दोनों ने एक साथ आग्रह किया।
"नही गुरुदेव! अब विश्राम नही,
युद्ध का घण्टा बजा दिया जाए।
रक्षक लौट आया है।अब सिर्फ युद्ध होगा जब तक उस “UNDEAD” को मै उसके किये की सज़ा नही दे देता , मेरा बदला पूरा नही होगा,
और मेरा बदला पूरा होकर रहेगा हर कीमत पर..…."
रक्षक एक ही साँस में कह गया।
" ठीक है नायक ! हम तुम्हारे साथ है ।
हम सब तुम्हारे साथ है ,रक्षक!"
परन्तु रात्रि में युद्ध नही किया जा सकता, सुबह होते ही हम रण क्षेत्र चलेंगे।
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उसी ग्रह पर कही और ....
दो लोग आपस मे बात कर रहे थे, दोनों के चेहरे पर नकाब जैसा कोई वस्त्र था जिसमे केवल आंखे ही बाहर दिख रही थी, दोनों आपस में कोई बात कर रहे थे। दूसरा, पहले को समझा रहा था।
दूसरा - "वो सबकुछ पूर्ण सच नही है । तुम्हे मेरा यकीन करना होगा। जो पूर्ण सच है उसे जानना होगा।"
पहला :- "तो फिर क्या तुम ये कहना चाहते हो कि मैंने जो जाना है, वो सब झूठ है!"
दूसरा :- "मैने ऐसा कभी नही कहा,परन्तु वो पूर्ण सत्य नही है,पूरी बात तुमको पता नही है।"
पहला :- "तो पूरी पूर्ण सत्य क्या है? मुझे बताओ।"
दूसरा :- "पहले तुम्हे मेरी शर्तों को स्वीकार करना पड़ेगा उसके पश्चात!"
पहला :- "ठीक है, मगर वे हमें धोखा देना क्यों चाहेंगे भला?"
और मैं तुमपर भरोसा कैसे करूँ??
क्योंकि मैं, तुम ही हूँ।- दूसरा अपने चेहरे पर रखा कपड़ा हटाते हुए कहता है, तुम मुझे यहां छोड़कर गए थे।
पहला - मुझे कुछ भी याद नही। मुझे वो बताओ जो मुझे पता नही। पूर्ण सत्य क्या है
दूसरा :-"पूर्ण सत्य को जानने का अभी समय नही है, पर उन्हें सिर्फ उतना ही पता है जो हो चुका है, अंधेरा सबसे छिप सकता है, उन्हें वो बात नही पता जिससे तुम सबसे ज्यादा क्रोधित होते हो।"
पहला - मतलब मेरा यहां आना एक उचित निर्णय था!
दूसरा - हां! तुमने मुझे यहां इसीलिए तो छोड़ा था, अब समय आ गया है कि तुम उस सच को खुद से जानो।
पहला - जल्दी करो! अभी बहुत कुछ जानना बाकी है।
दूसरा - इतनी व्यग्रता उचित नही है! संयम से काम लो
तुम्हे जब भी मेरी जरूरत हो याद कर लेना, अभी हम सबको एक होने का भी समय आने वाला है, शीघ्र वापस जाओ।
हम किसी के मन मे शंका उत्पन्न नही होने दे सकते।
पहला - अभी जाना आवश्यक है, तुमसे अतिशीघ्र मिलूंगा।
दोनों अलग अलग विपरीत दिशाओं में चल दिए, अभी भी रात अंधेरी थी जो धीरे धीरे हल्की होने लगी थी, अब रात जल्द ही समाप्त होने को थी।
Hayati ansari
29-Nov-2021 09:55 AM
Nice
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Niraj Pandey
09-Oct-2021 12:16 AM
हर भाग में अगले भाग का इंतजार बढ़ा देते हो
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Seema Priyadarshini sahay
05-Oct-2021 05:08 PM
बहुत खूबसूरत
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